राजीव, दुमका: दो जुलाई को काठीकुंड थाना से महज पांच किलोमीटर दूर जमनी-आमतल्ला के सघन जंगलों की मदमस्त हरियाली भले ही बाहर से देखने पर खुश होने का एहसास दे रही थी, लेकिन अंदर खून की होली से धरती का रंग लाल था। सवाल यह कि आखिर प्रशासन को जब यह पता है कि पूरा इलाका नक्सलियों के आगोश में है तो आलाधिकारियों के निर्देशों का पालन किस परिस्थिति में नहीं हो रहा था। क्या पुलिस महकमा ऐसे ही बड़े घटनाओं का इंतजार कर रही थी?
Kumi taguchi biography abc songविकास की धीमी गति पर प्रशासनिक चाबुक मखमली क्यों रहा? जिस पुलिया पर एसपी एवं उनके अमले पर हमला बोला गया है, आखिर उसके पूरी होने की मियाद क्या थी और निर्माण तयशुदा मियाद पर पूरा क्यों नहीं हो सका था?
काठीकुंड थाना को इतनी बड़ी वारदात किए जाने की भनक तक क्यों नहीं लग पाई? पाकुड़ के एसपी के लौटने की खबर भी काठीकुंड थाना को क्यों नहीं थी?
आखिर एक माह पूर्व पाकुड़ में पदास्थापित एसपी अमरजीत की हत्या किए जाने के पीछे नक्सलियों की मंशा क्या थी?
Current biography yearbook 2012 nfl draftअमड़ापाड़ा के थानेदार को दो बजकर 32 मिनट पर किया था फोन: घटना वाले दिन के करीब दो बजकर 32 मिनट पर घटनास्थल से पाकुड़ के एसपी अमरजीत ने अमड़ापाड़ा थाना के थानेदार रंजीत ¨मज को मोबाइल पर दो बार फोन कर कहा कि - ¨मज जल्दी आओ हम फंस गए हैं..। यह जानकारी बुधवार अलसुबह रंजीत ¨मज ने घटनास्थल का जायजा लेने पहुंचे सूबे के डीजीपी राजीव कुमार को दी थी। रंजीत ने कहा कि सूचना मिलने के फौरन बाद वह पुलिस बल के साथ घटनास्थल के लिए कूच किए, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। मौके पर पहुंच कर देखा कि एसपी साहब समेत चार जवान शहीद हो चुके थे। एसपी साहब का शव पुल से सटे एक पेड़ की नीचे था। उनका शरीर गोलियों से छलनी था। तब तक मौके पर पाकुड़िया एवं गोपीकांदर की पुलिस बल भी पहुंच चुके थे। सबने मिलकर दो घायल जवानों को काठीकुंड के निकट स्थित रिंची अस्तपाल पहुंचाया। इधर मौके पर पहुंचे डीजीपी ने जब यह जानना चाहा कि आखिर घटना के बाद सबसे पहले कौन पहुंचा तो काठीकुंड के थानेदार अशोक कुमार ने कहा था कि सबसे पहले काठीकुंड की पुलिस मौके पर पहुंची थी। उन्हें तकरीबन दो बजकर 20 मिनट पर पुलिस पिकेट से गोलीबारी होने की सूचना मिली थी। मौके पर पहुंच कर सबसे पहले एक घायल हवलदार को इलाज के लिए काठीकुंड पहुंचाया।
अशोक कुमार ने बताया था कि मौके पर पहुंच कर उन्होंने देखा कि एसपी साहब के स्काíपयो में कोई नहीं है। इधर पाकुड़िया के थानेदार बेंडिक्ट मरांडी ने कहा कि तीन बजकर पांच मिनट पर उन्हें एसपी साहब को एस्कॉर्ट करना था, लेकिन देर होने पर वे आगे बढ़ गए। पूछताछ के दौरान यह भी जानकारी मिली कि तकरीबन की संख्या में नक्सली घटना को अंजाम देने पहुंचे थे। पूरी स्थिति का जायजा लेने के बाद डीजीपी राजीव कुमार ने उस वक्त कहा था कि इस इलाके में विशेष अभियान चलेगा। इसके लिए पर्याप्त सीआरपी व बल मुहैया कराये जाएंगे। आवश्यकता पड़ी तो हेलीकाप्टर की मदद ली जाएगी। इस मौके पर उनके साथ गृह सचिव एन.एन.पांडेय, विशेष शाखा के एडीजी रेजी डुंगडुंग, संताल परगना के आयुक्त अशोक कुमार मिश्र, उपायुक्त हर्ष मंगला, एसपी निर्मल कुमार मिश्र, एसडीओ श्याम नारायण राम समेत पुलिस के कई पदाधिकारी उपस्थित थे। गोली लगने के बाद भी लोहा लेने की थी मंशा: घटनास्थल का मुआयना करने पहुंचे डीजीपी राजीव कुमार ने घटना की पूरी परिस्थितियों से अवगत हुए थे। इसी क्रम में उन्हें जब शहीद एसपी अमरजीत के नक्सलियों के बीच फंसने और बांह में गोली लगने के बाद भी अपनी गाड़ी से निकल कर नक्सलियों से लोहा लेने की मंशा से पुल के नीचे से जाकर पोजीशन लेने की जानकारी मिली। पता चला कि कैसे खून से लथपथ एसपी ने अपने साहस का परिचय देते हुए इस प्रतिकूल परिस्थिति में भी नक्सलियों से लोहा लेने की सोची। हालांकि एसपी अपनी इस मंशा में सफल होते, इससे पहले ही नक्सली उन्हें ढूंढते हुए मौके पर पहुंच गए और नजदीक से गोलियां दाग कर उन्हें छलनी कर दिया था। जांच के दौरान घटनास्थल को देखकर यह भी अंदाजा लगाया गया कि निर्माणाधीन पुल के समीप पहुंचने पर वाहन की गति स्वत: धीमी हो जाती है क्योंकि वहां की सड़क उबड़-खाबड़ है। नक्सलियों ने इसी का लाभ उठाया और घटना को अंजाम दिया।
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